Updated: | Sun, 04 Oct 2020 04:38 PM (IST)
MP Assembly by-elections जोगेंद्र सेन. ग्वालियर (नईदुनिया)। कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने उपचुनाव में तीनों विधानसभा क्षेत्र में बेहिसाब धन खर्च होने की आशंका आयोग को भेजी गई रिपोर्ट में जताई है। इस रिपोर्ट से मदनलाल धरती पकड़ का चेहरा सामने आ गया। मदनलाल एक ऐसी चुनावी शख्सियत थे, जिन्होंने 4 दशक में पार्षदी से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ा। चुनावों में उन्होंने जमानत राशि के अलावा अपना एक पैसा भी खर्च नहीं किया। इनका चुनाव चिन्ह घंटा होता था।
वे तांगे में बैठकर लंबा टोपा लगाकर चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे। अपना पर्चा भी एक रुपये में मतदाता को देते थे। उस समय उनके चुनाव लड़ने के गुण अर्थ को चुनावी विदूषक बताकर हवा में उड़ा दिया जाता था। चुनाव के बाद वे कोर्ट में चुनाव में धनबल के बढ़ते उपयोग पर रोक लगाने के लिए याचिका भी दायर करते थे। मदनलाल धरती पकड़ सुप्रीम कोर्ट के अभिभाषक थे।
इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी व नरसिम्हा राव के खिलाफ चुनाव लड़ा
अंचल में चुनाव हो और मदनलाल धरती पकड़ की याद नहीं आए ऐसा संभव नहीं है। दही मंडी में निवास करने वाले मदनलाल धरती पकड़ अभिभाषक थे। वे सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करने के लिए रजिस्टर्ड भी थे, लेकिन प्रेक्टिस करने यदा-कदा ही कोर्ट में जाते थे। उनका शहर में साड़ी व सेनेट्री का कारोबार था। वे 1962 से 2002 के बीच पार्षदी से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ चुके थे।
वे इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी, नरसिम्हाराव व माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए उनके क्षेत्रों में भी नामांकन दाखिल करने के लिए जाते थे और अपने अंदाज में चुनाव प्रचार कर सुर्खियों में रहते थे। लोग भले ही उन्हें वोट नहीं देते थे, लेकिन उनके जज्बे का सम्मान अवश्य करते थे।
आइसक्रीम वाले की घंटी सुनकर मां डरकर बोलीं- चुनाव आ गए क्या
मदनलाल धरती पकड़ के पुत्र हरिदास अग्रवाल ने बताया कि पिताजी का उद्देश्य चुनाव जीतना कभी नहीं रहा। वे लोकतंत्र को धनबल के खतरे से आगाह करना चाहते थे। आज उनके विचार प्रासंगिक लगते हैं। हम लोग देख रहे हैं कि लोकतंत्र का किस तरह से मजाक बनाया जा रहा है। धनबल से सत्ता कैसे हासिल की जा रही है। चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री तय हो जाता है।
विधायक व सांसद तो जीतने के लिए संगठन की खुटी से बंध जाता है। जबकि मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार संविधान ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही दिया है। पिताजी के चुनावी जुनून से पूरा परिवार डरता था। हरिदास अग्रवाल ने बताया कि एक बार माताजी भोजन कर रही थीं, तभी उन्हें आईसक्रीम वाले की घंटी सुनाई दी। डरकर उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या चुनाव आ गया कि देख तेरे पिताजी ने चुनाव-चिन्ह घंटा तो बाहर नहीं निकाल लिया। मदनलाल धरती पकड़ का देहवासन 2003 में हो गया। उनके चिरनिद्रा में सोने के साथ लोकतंत्र को घंटा बजाकर जगाने की मुहिम सदा के लिए खामोश हो गई।
Posted By: Hemant Kumar Upadhyay
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