Publish Date: | Thu, 01 Oct 2020 02:37 PM (IST)
बलबीर सिंह, ग्वालियर International Day for Older Persons। ग्वालियर के महालेखाकार कार्यालय से छह साल पहले रिटायर्ड हुए तीन बुजुर्गों की सेकंड इनिंग सरकारी स्कूल के बच्चों के जीवन में खुशियों के नये रंग भर रही है। घर बैठे बोर होने से अच्छा है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को गणवेश, पुस्तकें, पेंटिंग का सामान उपलब्ध कराया जाए। व्यवहारिक ज्ञान के लिए घुमाया जाए। इस विचार के साथ वरिष्ठ लेखाधिकारी पद से रिटायर हुए जीएलएस गौर, संभाजी राव शिंदे और आरके झा ने 2015 में आगाह नाम से संगठन बनाया। पहले एक स्कूल को गोद लिया, फिर दो और स्कूल गोद लेकर अपने विचार को अमल में लाना शुरू कर दिया। आज इनके साथ 15 और साथी जुड़ गए हैं। सभी लोग अपनी पेंशन की राशि से बच्चों को शिक्षण सामग्री मुहैया कराते हैं।
जीवन की सांझ में कुछ अलग करने की चाहत में इन बुजुर्गों ने पांच साल पहले आगाह संस्था बनाकर हरनामपुर बजिरया, काशीपुरा व थाटीपुर के शासकीय प्राथमिक स्कूल को गोद लिया है। इन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को निजी स्कूल के बच्चों को मिलने वाली शिक्षा का माहौल पैदा करते हैं। ऐसे समय स्कूल जाते हैं जब बच्चों का खाली समय होता है। प्रतियोगिता आदि कराने से बच्चे भी उनके कार्यक्रम को मिस नहीं करते हैं। दो घंटे बच्चों को समय देते हैं। 26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर विशेष दिनों में बच्चों की प्रतियोगिताएं कराई जाती हैं। पेटिंग सिखाने पर विशेष जोर रहता है। बच्चों से आपस में सवाल जवाब भी कराते हैं। 6 साल से बच्चों को बीच जा रहे हैं। फिलहाल कोरोना की वजह से स्कूल बंद हैं।
300 बच्चों को कर चुके हैं लाभान्वित
इस ग्रुप के माध्यम से ये बुजुर्ग सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब 300 बच्चों को मदद कर चुके हैं। इनके लिए प्रतियोगिता आयोजित कराते हैं। कॉपी, पेंसिल सहित अन्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं। चिड़िया घर व किला घुमाने भी लेकर जाते हैं।
समाज में शिक्षा की रोशनी फैलाने से बड़ा कोई नहीं
संस्था के अध्यक्ष का जीएलएस गौर का कहना है कि सेवानिवृत्त होने के बाद कोई काम नहीं बचा था, हम लोगों को विचार आया कि किसी को शिक्षा देने से अच्छा काम नहीं है। हम लोगों ने प्राइमरी स्कूल को चुना। उसके लिए सबसे पहले शिक्षा विभाग के इजाजत ली। एक स्कूल से शुरुआत की, लेकिन अब तीन स्कूलों को गोद लिया है। हम अपनी पेंशन फंड से पैसा इकट्ठा करते हैं। प्राइमरी स्कूल छात्रों को वह सामान उपलब्ध कराते हैं जिन्हें सरकर नहीं देती है। दूसरे सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी हमें बुलाते हैं। हम लोग स्कूल खुलने के इंतजार में हैं।
Posted By: Prashant Pandey
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे